हाल ही में इंकलाब (उर्दू दैनिक ) के ब्यूरो चीफ मुमताज आलम रिजवी ने यूपी में आजम खान, इमाम बुखारी,ओवैसी और कुछ दीगर मुसलमान नेताओं के साथ आने की सियासी संभावना को लेकर एक खबर लिखी तो मुस्लिम सियासी हलकों में एक हलचल सी पैदा हो गई। लोग इसके सियासी गुणा—गणित में लग गए।
हालांकि इन प्रमुख मुस्लिम हस्तियों के साथ आने की बात अभी महज अटकल कही जाएगी, लेकिन अगर ऐसा हो जाए तो तो फिर देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे की सियासत पर इसका क्या असर होगा, मुसलमानों की सियासी हैसियत पर क्या असर पडेगा, खुद को सेकुलर कहने वाली पार्टियों की सियासी गणित का क्या होगा, सबसे बडा सवाल यह है कि आखिर इससे बीजेपी को किस हद तक फायदा होगा ?
इन सवालों की तह में जाकर चीजों को टटोलने की जरूरत है। सबसे पहली बात ये कि अगर आजम, बुखारी और ओवैसी जैसे मुस्लिम चेहरे साथ आते हैं तो यूपी की सियासत में बहुत बडा ध्रुवीकरण होगा। इसमें आगे कहने की जरूरत नहीं है कि यूपी में धार्मिक ध्रुवीकरण का फायदा किसको होगा।
राज्य में करीब 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और अब तक के चुनावों में जीत और हार का फैसला करने में इनका प्रमुख किरदार रहा है। इसी वोटबैंक पर सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी स्वघोषित सेकुलर पार्टियों की नजर होती है। बीते दो दशक में मुसलमान वोटों की सपा की सियासी किस्मत चमकाने में अहम भूमिका रही। साल 2007 मे मायावती को मिले स्पष्ट बहुमत में भी मुसलमानों ने अहम किरदार निभाया था। कांग्रेस भी मुसलमानों के वोट के ही सहारे यूपी में अपनी सियासी हैसियत थोडा—बहुत बचाए हुए है। ऐसे में इस बार भी ये पार्टियां मुस्लिम मतों पर निगाह जमाए हुए हैं।
इस बार का यूपी चुनाव कई मायनों में अलहदा है। इस बार मोदी फैक्टर और ओवैसी काफी अहम माने जा रहे हैं। मोदी की लोकप्रियता और उनकी एक अलग तरह की छवि बीजेपी के लिए जरूर फायदेमंद रहने वाली है। पर बीजेपी की इस यूएसपी को ताकत देने का काम ओवैसी फैक्टर भी कर सकता है। अगर ऐसे में ओवैसी के साथ इमाम बुखारी और आजम खान हो लिए तो फिर को बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा हो जाएगा।
यूपी की सियासत में आजम खान पहले से ही सियासी ध्रुवीकरण का एक प्रमुख सेंटर बने हुए हैं और अब ओवैसी दूसरे सेंटर बन रहे हैं। आजम और बुखारी की निजी कडवाहट अगर दूर हो जाए और ये दोनो हाथ मिला लें तो फिर मुस्लिम मतों का ये एक बडा सेंटर बन जाएगा। ओवैसी औेर कुछ दूसरे मुस्लिम नेता इनके साथ आए तो ये काफी ताकतवर हो जाएंगे।
हालांकि इन प्रमुख मुस्लिम हस्तियों के साथ आने की बात अभी महज अटकल कही जाएगी, लेकिन अगर ऐसा हो जाए तो तो फिर देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे की सियासत पर इसका क्या असर होगा, मुसलमानों की सियासी हैसियत पर क्या असर पडेगा, खुद को सेकुलर कहने वाली पार्टियों की सियासी गणित का क्या होगा, सबसे बडा सवाल यह है कि आखिर इससे बीजेपी को किस हद तक फायदा होगा ?
इन सवालों की तह में जाकर चीजों को टटोलने की जरूरत है। सबसे पहली बात ये कि अगर आजम, बुखारी और ओवैसी जैसे मुस्लिम चेहरे साथ आते हैं तो यूपी की सियासत में बहुत बडा ध्रुवीकरण होगा। इसमें आगे कहने की जरूरत नहीं है कि यूपी में धार्मिक ध्रुवीकरण का फायदा किसको होगा।
राज्य में करीब 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और अब तक के चुनावों में जीत और हार का फैसला करने में इनका प्रमुख किरदार रहा है। इसी वोटबैंक पर सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी स्वघोषित सेकुलर पार्टियों की नजर होती है। बीते दो दशक में मुसलमान वोटों की सपा की सियासी किस्मत चमकाने में अहम भूमिका रही। साल 2007 मे मायावती को मिले स्पष्ट बहुमत में भी मुसलमानों ने अहम किरदार निभाया था। कांग्रेस भी मुसलमानों के वोट के ही सहारे यूपी में अपनी सियासी हैसियत थोडा—बहुत बचाए हुए है। ऐसे में इस बार भी ये पार्टियां मुस्लिम मतों पर निगाह जमाए हुए हैं।
इस बार का यूपी चुनाव कई मायनों में अलहदा है। इस बार मोदी फैक्टर और ओवैसी काफी अहम माने जा रहे हैं। मोदी की लोकप्रियता और उनकी एक अलग तरह की छवि बीजेपी के लिए जरूर फायदेमंद रहने वाली है। पर बीजेपी की इस यूएसपी को ताकत देने का काम ओवैसी फैक्टर भी कर सकता है। अगर ऐसे में ओवैसी के साथ इमाम बुखारी और आजम खान हो लिए तो फिर को बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा हो जाएगा।
यूपी की सियासत में आजम खान पहले से ही सियासी ध्रुवीकरण का एक प्रमुख सेंटर बने हुए हैं और अब ओवैसी दूसरे सेंटर बन रहे हैं। आजम और बुखारी की निजी कडवाहट अगर दूर हो जाए और ये दोनो हाथ मिला लें तो फिर मुस्लिम मतों का ये एक बडा सेंटर बन जाएगा। ओवैसी औेर कुछ दूसरे मुस्लिम नेता इनके साथ आए तो ये काफी ताकतवर हो जाएंगे।
कुछ लोगों का यह कहना है कि बीजेपी को फायदा भले ही लेकिन कथित सेकुलर पार्टियों को एक बार सबक सिखाना जरूरी है। अगर इनकी बात भी मान ली जाए तो फिर ये सवाल उठता है कि आजम, बुखारी और ओवैसी के साथ आने से सूबे में मुसलमानों की सियासी हैसियत क्या रह जाएगी ?
मौजूदा समय में यूपी के भीतर 50 से ज्यादा मुस्लिम विधायक हैं। अगर धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ तो शायद ये संख्या आधी भी नहीं बचे। ये हालात हमने 2014 के लोकसभा चुनाव में देखा था जब यूपी से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया। इसको देखते यह कहा जा सकता है कि सिर्फ मुस्लिम मतों के दम पर सूबे की सत्ता का ख्वाब देखना दूर की कौडी साबित होगा।
यह जरूर है कि आजम, बुखारी और ओवैसी का संभावित गठबंधन अगर सपा या बसपा से तालमेल करता है तो शायद इनको कुछ लाभ हो। पर इन मुस्लिम हस्तियों के साथ आने से बीजेपी की पांचों उंगलियां घी में रहेंगी।
फोटो— गूगल एवं पीटीआई
मौजूदा समय में यूपी के भीतर 50 से ज्यादा मुस्लिम विधायक हैं। अगर धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ तो शायद ये संख्या आधी भी नहीं बचे। ये हालात हमने 2014 के लोकसभा चुनाव में देखा था जब यूपी से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया। इसको देखते यह कहा जा सकता है कि सिर्फ मुस्लिम मतों के दम पर सूबे की सत्ता का ख्वाब देखना दूर की कौडी साबित होगा।
यह जरूर है कि आजम, बुखारी और ओवैसी का संभावित गठबंधन अगर सपा या बसपा से तालमेल करता है तो शायद इनको कुछ लाभ हो। पर इन मुस्लिम हस्तियों के साथ आने से बीजेपी की पांचों उंगलियां घी में रहेंगी।
फोटो— गूगल एवं पीटीआई