Saturday, June 4, 2016

....अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी की बल्ले—बल्ले

 हाल ही में इंकलाब (उर्दू दैनिक ) के ब्यूरो चीफ मुमताज आलम रिजवी ने यूपी में आजम खान, इमाम बुखारी,ओवैसी और कुछ दीगर मुसलमान नेताओं के साथ आने की सियासी संभावना को लेकर एक खबर लिखी तो मुस्लिम सियासी हलकों में एक हलचल सी पैदा हो गई। लोग इसके सियासी गुणा—गणित में लग गए।
हालांकि इन प्रमुख मुस्लिम हस्तियों के साथ आने की बात अभी महज अटकल कही जाएगी, लेकिन अगर ऐसा हो जाए तो ​तो ​​​फिर देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे की सियासत पर इसका क्या असर होगा, मुसलमानों की सियासी ​हैसियत पर क्या असर पडेगा, खुद को सेकुलर कहने वाली पार्टियों की सियासी गणित का क्या होगा, सबसे बडा सवाल य​ह है कि आखिर इससे बीजेपी को किस हद तक फायदा होगा ?
 इन सवालों की तह में जाकर चीजों को टटोलने की जरूरत है। सबसे पहली बात ये कि अगर आजम, बुखारी और ओवैसी जैसे मुस्लिम चेहरे साथ आते हैं तो यूपी की सियासत में बहुत बडा ध्रुवीकरण होगा। इसमें आगे कहने की जरूरत नहीं है कि यूपी में धार्मिक ध्रुवीकरण का फायदा किसको होगा।
 राज्य में करीब 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और अब तक के चुनावों में जीत और हार का फैसला करने में इनका प्रमुख किरदार रहा है। इसी वोटबैंक पर सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी स्वघोषित सेकुलर पार्टियों की नजर होती है। बीते दो दशक में मुसलमान वोटों की सपा की सियासी किस्मत चमकाने में अहम भू​मिका रही। साल 2007 मे मायावती को मिले स्पष्ट बहुमत में भी मुसलमानों ने अहम किरदार निभाया था। कांग्रेस भी मुसलमानों के वोट के ही सहारे यूपी में अपनी सियासी हैसियत थोडा—बहुत बचाए हुए है। ऐसे में इस बार भी ये पार्टियां मुस्लिम मतों पर निगाह जमाए हुए हैं।
 इस बार का यूपी चुनाव कई मायनों में अलहदा है। इस बार मोदी फैक्टर और ओवैसी काफी अहम माने जा रहे हैं। मोदी की लोकप्रियता और उनकी एक अलग तरह की छवि बीजेपी के लिए जरूर फायदेमंद रहने वाली है। पर बीजेपी की इस यूएसपी को ताकत देने का काम ओवैसी फैक्टर भी कर सकता है। अगर ऐसे में ओवैसी के साथ इमाम बुखारी और आजम खान हो लिए तो फिर को बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा हो जाएगा।
 यूपी की सियासत में आजम खान पहले से ही सियासी ध्रुवीकरण का एक प्रमुख सेंटर बने हुए हैं और अब ओवैसी दूसरे सेंटर बन रहे हैं। आजम और बुखारी की निजी कडवाहट अगर दूर हो जाए और ये दोनो हाथ मिला लें तो फिर मुस्लिम मतों का ये एक बडा सेंटर बन जाएगा। ओवैसी औेर कुछ दूसरे मुस्लिम नेता इनके साथ आए तो ये काफी ताकतवर हो जाएंगे।




  कुछ लोगों का यह कहना है कि बीजेपी को फायदा भले ही लेकिन कथित सेकुलर पार्टियों को एक बार सबक सिखाना जरूरी है। अगर इनकी बात भी मान ली जाए तो फिर ये सवाल उठता है कि आजम, बुखारी और ओवैसी के साथ आने से सूबे में मुसलमानों की सियासी ​हैसियत क्या रह जाएगी ?
  मौजूदा समय में यूपी के भीतर 50 से ज्यादा मु​स्लिम विधायक हैं। अगर धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ तो शायद ये संख्या आधी भी नहीं बचे। ये हालात हमने 2014 के लोकसभा चुनाव में देखा था जब यूपी से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया। इसको देखते यह कहा जा सकता है कि सिर्फ मुस्लिम मतों के दम पर सूबे की सत्ता का ख्वाब देखना दूर की कौडी साबित होगा।
  यह जरूर है कि आजम, बुखारी और ओवैसी का संभावित गठबंधन अगर सपा या बसपा से तालमेल करता है ​तो शायद इनको कुछ लाभ हो। पर इन मुस्लिम हस्तियों के साथ आने से बीजेपी की पांचों उंगलियां घी में रहेंगी।

फोटो— गूगल एवं पीटीआई

Anti dowry, girl’s rights reform initiative turn into a movement here


     As the large section of our society, including Muslims does not feel any embracement in taking or giving dowry in marriages, members of Muslim Rajput community in Gazipur of UP are citing an example of anti dowry reform by saning barat, dowry, feasts and other marriage rituals which are not Islamic.
This noble initiative of an organisation of Muslim Rajputs of Kamsar Region in Gazipur, ‘Anjuman e Islah Muslim Rajput Kamsar o Bar’ has been turned into a movement.The Anjuman seeks to make marriage the least burdensome for the bride side.

The organisation also promoting people to give equal rights to their daughters in their properties and now inter cast marriages within Muslim society are also on its agenda.
The key person of this movement and Jamia Millia Islamia Professor Junaid Harish says that some people of his village started opposing the dowry system of our society in four decades ago and now many people are voluntarily joining this cause.
“In 1972, some people decided to oppose the dowry system and it turned into a movement eventually. Now, almost all the people of our community do not demand or accept dowry. The important thing is that the youths are participating in this cause. I think it is a huge achievement for our movement.”  Harish told Bindas Reporter.
He said, “Later, We added little other reform initiative with this cause. Giving equal rights to the daughters in properties is one of them. We are encouraged that people are happily doing this. Equal rights in properties for girls are not only a big social initiative but also it is an important in Islamic point of view. ”
It is also noteworthy that giving equal right to girls in properties is also on the agenda of All India Muslim Personal Board.
The Anjuman now adding another initiative of inter caste marriages within muslim community because Muslims of this region are divided on the line of so-called upper and lower castes.

 Professor Harish, a faculty of Islamic studies department of Jamia says, “It is a reality that Muslims are divided on the line of caste system like Hindus in India and our region is not different. The caste system is not in Islam. So, we are going to promote inter-caste marriages within Muslim community. Initially, many people showing positive response to this initiative.”

Friday, June 3, 2016

दान पुन्य के नाम पर इस बुराई को मिल रहा है बढावा


देश में मंदिरों, मस्जिदों, दरगाहों और कई दूसरे धार्मिक स्थलों पर भीख मांगने वालों की मौजूदगी आम बात है, लेकिन इन जगहों पर मासूम बच्चों को भी इस धंधे में लगाया गया है.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या लोग धार्मिक भावना के तहत दान पुण्य के नाम पर बाल भिक्षावृत्ति को बढावा दे रहे हैं?
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछले साल बाल भिक्षावृत्ति पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें अलग अलग अध्ययनों के माध्यम से कुछ आंकड़े पेश किए गए. इसके अनुसार एक दिन जब राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांग रहे बच्चों की गिनती की गई तो यह संख्या 5507 पाई गई.
राष्ट्रीय राजधानी में स्थित कई धार्मिक स्थल बाल भिक्षावृत्ति के इस धंधे का साक्षी बन रहे हैं. चाहे ऐतिहासिक जामा मस्जिद हो या फिर दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में हनुमान मंदिर अथवा हरजत निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह, इन सभी स्थानों पर बच्चे भीख मांगते देखे जा सकते हैं.
गैर सरकारी संगठन ‘चेतना’ के निदेशक संजय गुप्ता का कहना है, ‘आम जनता धार्मिक भावना में आकर बाल भिक्षावृत्ति में योगदान दे रही है. लोग दान-पुण्य समझकर पैसे देते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि वे कहीं न कहीं बाल अधिकारों के खिलाफ काम कर रहे हैं. उनको यह नहीं पता कि जिन बच्चों को वे भीख दे रहे हैं उनके पीछे कोई और है जिसके पास पैसा जा रहा है.’
निजामुद्दीन दरगाह के बाहर इन दिनों रोजाना 40 से 50 बच्चे भीख मांगते हैं. ये बच्चे आम तौर पर महिलाओं के साथ होते हैं. ये लोग सुबह दरगाह के बाहर पहुंच जाते हैं और देर रात वहां से हटते हैं.
दरगाह कमेटी के मुख्य प्रभारी सैयद कासिफ निजामी ने बताया, ‘दरगाह के बाहर करीब 40-50 बच्चे रोजाना होते हैं और इनके साथ महिलाएं होती हैं. ये बच्चे लोगों का भीख मांगते हुए दूर तक पीछा करते हैं जिसकी लोग शिकायत भी करते हैं. हमने प्रशासन से कई बार शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ. मुझे लगता है कि इसके पीछे पूरा गिरोह काम कर रहा है.’
निजामुद्दीन दरगाह जैसा सूरत-ए-हाल जामा मस्जिद, हनुमान मंदिर और दूसरे कई धार्मिक स्थलों का है जहां बच्चों से भीख मंगवायी जाती है अथवा मासूम बच्चों का इस्तेमाल करके भीख मांगने का धंधा चल रहा है.
गुप्ता ने कहा, ‘‘लोगों के दिमाग में यह बात रहती है कि बच्चे को भीख देकर बहुत पुण्य का काम कर रहे हैं। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है. इन बच्चों का इस्तेमाल करके भीख का धंधा चला रहे लोग आम जनता की धार्मिक मनोभावना का पूरा दोहन करते हैं. उनको पता है कि बच्चों के हाथ फैलाने से लोग अपनी जेब से अधिक पैसे निकालेंगे। धर्म स्थलों पर उनका यह धंधा खूब फल-फूल रहा है.’
दिलचस्प बात यह है कि गुरूद्वारों के बाहर भीख मांगने वाले बच्चे और दूसरे भिखारियों की मौजूदगी लगभग ना के बराबर है. इसकी वजह स्पष्ट करते हुए गुप्ता कहते हैं, ‘ये लोग गुरूद्वारों के बाहर नहीं होते क्योंकि वहां इनको पैसे नहीं मिलते. वहां लंगर होता है और लोग इनको पैसे देने की बजाय लंगर खाने के लिए आमंत्रित करते हैं। इसलिए ये गुरूद्वारों के पास बहुत कम होते हैं.’